देखी न सुब्ह-ओ -शाम कभी इश्क़ में मियाँ ।
आराम था हराम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
सूरत पे एक यूँ ही हमारी नहीं बजा ।
अपना था इक मुक़ाम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
हाथों की उसकी देख हिना दूर हो गया ।
जब-जब हुआ ज़ुकाम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
खा-खा के फ़ास्ट फ़ूड क्यूँ बीमार पड गए ।
खाओ ग़िज़ा तमाम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
दो चार ही क़दम चले तो थक गए हैं आप ।
आता नहीं क़याम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
क़ासिद गया है जेल में तो हम गए समझ ।
मत भेजिए पयाम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
'सैनी' की ग़ज़लें गौर से पढ़ कर के देखिये ।
आयेंगी तेरे काम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
आराम था हराम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
सूरत पे एक यूँ ही हमारी नहीं बजा ।
अपना था इक मुक़ाम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
हाथों की उसकी देख हिना दूर हो गया ।
जब-जब हुआ ज़ुकाम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
खा-खा के फ़ास्ट फ़ूड क्यूँ बीमार पड गए ।
खाओ ग़िज़ा तमाम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
दो चार ही क़दम चले तो थक गए हैं आप ।
आता नहीं क़याम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
क़ासिद गया है जेल में तो हम गए समझ ।
मत भेजिए पयाम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
'सैनी' की ग़ज़लें गौर से पढ़ कर के देखिये ।
आयेंगी तेरे काम कभी इश्क़ में मियाँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी