Monday, 19 August 2013

कभी इश्क़ में मियाँ

देखी न सुब्ह-ओ -शाम कभी इश्क़ में मियाँ ।
आराम था हराम  कभी इश्क़ में मियाँ ॥

सूरत पे एक यूँ ही हमारी नहीं बजा ।
अपना था इक मुक़ाम  कभी इश्क़ में मियाँ ॥

हाथों की उसकी देख हिना दूर हो गया ।
जब-जब हुआ ज़ुकाम  कभी इश्क़ में मियाँ ॥

खा-खा के फ़ास्ट फ़ूड क्यूँ बीमार पड  गए ।
खाओ ग़िज़ा तमाम  कभी इश्क़ में मियाँ ॥

दो चार ही क़दम चले तो थक गए हैं आप ।
आता नहीं क़याम  कभी इश्क़ में मियाँ ॥

क़ासिद गया है जेल में तो हम गए समझ ।
मत भेजिए पयाम  कभी इश्क़ में मियाँ ॥

'सैनी' की ग़ज़लें गौर से पढ़ कर के देखिये ।
आयेंगी तेरे काम  कभी इश्क़ में मियाँ ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी