Tuesday, 25 September 2012

जूड़े की जूएँ


जिस  रोज़  से  ज़ुल्फ़ों  में  तेरी  क़ैद  हुआ  हूँ |
जूडे से  तेरे  जूएँ   मैं  चुग -चुग  के  थका  हूँ ||

पिट -पिट  के  हसीनों  से  मैं जेलों में सड़ा हूँ |
कल शाम से मैं  ज़ाती  मुचलके  पे  रिहा  हूँ ||

क्या रंग हो क्या रूप हो मुझको नहीं मतलब |
दुन्या  की  मैं  हर एक  ही  सूरत पे फ़िदा  हूँ ||

मेरे   सभी   साथी   बने   हैं   आज   पिताजी |
बस   आज  अकेला  ही  कुँआरा  मैं  बचा  हूँ ||

हाथों  में हिना मेरे भी लग  जाए  किसी रोज़ |
सालों से मैं बस इक इसी कोशिश में लगा हूँ ||

सजदे   किये   हैं   मैंने  ज़माने  में  सभी  के |
सब  के  ही  मगर  पावँ  से ठुकराया गया हूँ ||

तू ही बता ‘सैनी' भला क्या मुझ में  कमी है |
सूरत से भी सीरत से भी मैं अच्छा भला हूँ ||
  
डा० सुरेन्द्र  सैनी