जिस रोज़ से ज़ुल्फ़ों में तेरी क़ैद हुआ हूँ |
जूडे से तेरे जूएँ मैं चुग -चुग के थका हूँ ||
पिट -पिट के हसीनों से मैं जेलों में सड़ा हूँ |
कल शाम से मैं ज़ाती मुचलके पे रिहा हूँ ||
क्या रंग हो क्या रूप हो मुझको नहीं मतलब |
दुन्या की मैं हर एक ही सूरत पे फ़िदा हूँ ||
मेरे सभी साथी बने हैं आज पिताजी |
बस आज अकेला ही कुँआरा मैं बचा हूँ ||
हाथों में हिना मेरे भी लग जाए किसी रोज़ |
सालों से मैं बस इक इसी कोशिश में लगा हूँ ||
सजदे किये हैं मैंने ज़माने में सभी के |
सब के ही मगर पावँ से ठुकराया गया हूँ ||
तू ही बता ‘सैनी' भला क्या मुझ में कमी है |
सूरत से भी सीरत से भी मैं अच्छा भला हूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment