तेरे अब्बू से गर मेरी ज़रा पहचान हो जाती ।
तेर कूचे में आमद बस मेरी आसान हो जाती ॥
पड़े हैं आज तक जूते तेरी गलियों में जो मुझको ।
इकठ्ठे गर मैं कर लेता मेरी दूकान हो जाती ॥
ख़ुदा ने दे दिया होता मुझे भी रंग अगर थोड़ा ।
हसीना हर मेरे घर की भी तो मेहमान हो जाती ॥
सुपारी दे गया मेरी तेरा मामू कसाई को ।
तेरी मामी ही ख़ुद अब क्यूँ नहीं कुर्बान हो जाती ॥
तुझे भेजी थी कल चिठ्ठी दिखादी सबको वो तूने ।
वगरना यूँ न इक चिठ्ठी बबाल-ए -जान हो जाती ॥
महल्ले में अकेला मैं ही इक नाकाम आशिक हूँ ।
ख़ुदाया आशिक़ी मेरी अज़ीम-उश्शान हो जाती ॥
फ़क़ीरी भेस में 'सैनी'मुंडा कर दाढी ,मूछ -ओ -सर ।
अभी भी सोचता है कोई उसकी जान हो जाती ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
तेर कूचे में आमद बस मेरी आसान हो जाती ॥
पड़े हैं आज तक जूते तेरी गलियों में जो मुझको ।
इकठ्ठे गर मैं कर लेता मेरी दूकान हो जाती ॥
ख़ुदा ने दे दिया होता मुझे भी रंग अगर थोड़ा ।
हसीना हर मेरे घर की भी तो मेहमान हो जाती ॥
सुपारी दे गया मेरी तेरा मामू कसाई को ।
तेरी मामी ही ख़ुद अब क्यूँ नहीं कुर्बान हो जाती ॥
तुझे भेजी थी कल चिठ्ठी दिखादी सबको वो तूने ।
वगरना यूँ न इक चिठ्ठी बबाल-ए -जान हो जाती ॥
महल्ले में अकेला मैं ही इक नाकाम आशिक हूँ ।
ख़ुदाया आशिक़ी मेरी अज़ीम-उश्शान हो जाती ॥
फ़क़ीरी भेस में 'सैनी'मुंडा कर दाढी ,मूछ -ओ -सर ।
अभी भी सोचता है कोई उसकी जान हो जाती ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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