Tuesday, 19 November 2013

नेता

ज़बानी जंग लड़-लड़ कर हमें फुसला रहे नेता ।
समझता ये नहीं कोई कि हमको खा  रहे नेता ॥

मसाइल पर तो चर्चा आजकल होती नहीं कोई ।
फ़क़त इक दुसरे के एब ही गिनवा  रहे नेता ॥

कभी इस दल में जाते हैं कभी उस दल में जाते हैं ।
इलेक्शन में टिकिट मिलता नहीं पछता  रहे नेता ॥

सफ़ाचट झूठ कहते हैं मगर हम अक़्ल के अंधे ।
दिखाकर ख़ाब दिन में हमको यूँ बहका  रहे नेता ॥

ख़ुदा की याद आती है इन्हें इन ही दिनों शायद ।
मज़ार-ओ-मंदिर -ओ-मस्जिद में अब तो जा रहे नेता ॥

विलायत से मिले या हो किसी ज़रदार से हासिल ।
ग़लत हो या सही लोगों में ज़र बरसा  रहे नेता ॥

सलीक़ा -ए -ग़ज़ल तो भूल बैठा आजकल 'सैनी'।
सुना है अब सियासत में उसे भी ला  रहे नेता ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Sunday, 10 November 2013

बुद्धु बता रहा कोई

उसके पैग़ाम ला रहा कोई । 
मुझको उल्लू बना रहा कोई ॥ 

मांगने क़र्ज़ आ रहा कोई । 
नींद मेरी उड़ा रहा कोई ॥ 

हुस्न के ए टी एम से कैसे । 
प्यार मेरा चुरा रहा कोई ॥ 

बेसुरा एसी बारिशों में भी । 
मेघ मल्हार गा रहा कोई ॥ 

मुझको तीमार के बहाने से । 
रोज़ चूना  लगा रहा कोई ॥ 

मेरे जाने के बाद भी शायद । 
उसके घर रोज़ जा रहा कोई ॥ 

बोल 'सैनी'तू कब को सुधरेगा । 
तुझको बुद्धु  बता रहा कोई ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी