Thursday, 18 July 2013

ख़त नहीं आते

हुआ   जब   से  शुरू   रम्ज़ान  उनके  ख़त  नहीं  आते । 
हमारी    ज़िंदगी    वीरान   उनके   ख़त   नहीं    आते ॥ 

कभी    होता   है   यूँ  भी  पेट  पर  जब  लात  पड़ती है । 
कि   बेचे   सारे  क़ासिद  पान  उनके  ख़त  नहीं  आते ॥ 

उन्हें   इज़्ज़त  मिली  जब  से   उसीका  ये  नतीजा  है । 
लगा   होने   उन्हें  अभिमान  उनके  ख़त   नहीं  आते ॥ 

विलायत  में  हैं  दादा  फोन  का  स्विच ऑफ रखते हैं । 
परेशानी     में     दादीजान   उनके   ख़त   नहीं   आते ॥ 

परिंदों   जैसे   होते   हैं   विलायत   के   सभी   दिलबर । 
मियाँ   क्यूँ   हो   रहे  हल्कान  उनके  ख़त  नहीं  आते ॥ 

हमारी   जान - ए -जांना   अब  चलाती   हैं  हवाई  बस । 
कभी   लन्दन   कभी   जापान  उनके  ख़त  नहीं  आते ॥ 

सिखा  कर  इश्क़  'सैनी'  को  कभी  डिस्टेंस  लर्निंग से । 
कहाँ   अब  छुप  गए   श्रीमान  उनके  ख़त  नहीं  आते ॥ 

डाo सुरेन्द्र सैनी  

Tuesday, 16 July 2013

कुत्ता

मुसीबत  में  हमेशा  डाल   कर रक्खा है बेगम ने । 
मुझे कुत्ता समझ कर पाल कर रक्खा है बेगम ने ॥ 

पड़ोसन ने मंगाली मुझसे सब्जी क्या शराफ़त  में । 
कि रो-रो कर बुरा अब हाल कर रक्खा है बेगम ने ॥   

 निकलने  ही  नहीं  देती  मुझे  घर  से  हवा  खाने । 
 मेरी आज़ादी का दिन टाल कर रक्खा है बेगम ने ॥ 

 निकम्मा  हूँ , निठल्ला  हूँ ,करक्टर से मैं गीला हूँ ।                
 बिना  कंघे  रहूँ  बेबाल   कर  रक्खा   है बेगम  ने ॥ 

मेरे अम्मी-ओ-अब्बू आये घर में छा  गया मातम । 
हज़ारों हैं शिकन मुंह लाल कर रक्खा  है बेगम ने ॥ 

 हमारे  साले-सलहज  आ  गए  तो देखिये घर को । 
 बना कर अब तो नैनीताल कर रक्खा है बेगम ने ॥ 

 पडा  है  'सैनी'  घर  के  एक  कोने  में  लंगोटी  में । 
 न  जाने  कब  से पाएमाल कर रक्खा है बेगम ने ॥ 


 डाo सुरेन्द्र सैनी