हुआ जब से शुरू रम्ज़ान उनके ख़त नहीं आते ।
हमारी ज़िंदगी वीरान उनके ख़त नहीं आते ॥
कभी होता है यूँ भी पेट पर जब लात पड़ती है ।
कि बेचे सारे क़ासिद पान उनके ख़त नहीं आते ॥
उन्हें इज़्ज़त मिली जब से उसीका ये नतीजा है ।
लगा होने उन्हें अभिमान उनके ख़त नहीं आते ॥
विलायत में हैं दादा फोन का स्विच ऑफ रखते हैं ।
परेशानी में दादीजान उनके ख़त नहीं आते ॥
परिंदों जैसे होते हैं विलायत के सभी दिलबर ।
मियाँ क्यूँ हो रहे हल्कान उनके ख़त नहीं आते ॥
हमारी जान - ए -जांना अब चलाती हैं हवाई बस ।
कभी लन्दन कभी जापान उनके ख़त नहीं आते ॥
सिखा कर इश्क़ 'सैनी' को कभी डिस्टेंस लर्निंग से ।
कहाँ अब छुप गए श्रीमान उनके ख़त नहीं आते ॥
डाo सुरेन्द्र सैनी