हुआ जब से शुरू रम्ज़ान उनके ख़त नहीं आते ।
हमारी ज़िंदगी वीरान उनके ख़त नहीं आते ॥
कभी होता है यूँ भी पेट पर जब लात पड़ती है ।
कि बेचे सारे क़ासिद पान उनके ख़त नहीं आते ॥
उन्हें इज़्ज़त मिली जब से उसीका ये नतीजा है ।
लगा होने उन्हें अभिमान उनके ख़त नहीं आते ॥
विलायत में हैं दादा फोन का स्विच ऑफ रखते हैं ।
परेशानी में दादीजान उनके ख़त नहीं आते ॥
परिंदों जैसे होते हैं विलायत के सभी दिलबर ।
मियाँ क्यूँ हो रहे हल्कान उनके ख़त नहीं आते ॥
हमारी जान - ए -जांना अब चलाती हैं हवाई बस ।
कभी लन्दन कभी जापान उनके ख़त नहीं आते ॥
सिखा कर इश्क़ 'सैनी' को कभी डिस्टेंस लर्निंग से ।
कहाँ अब छुप गए श्रीमान उनके ख़त नहीं आते ॥
डाo सुरेन्द्र सैनी
नमस्कार महोदय,
ReplyDeleteमैंने एक हिंदी साहित्य संकलन नामक ब्लॉग बनाया है,जिन पर साहित्यकारों की रचनाओं के संकलित किया जा रहा है,यदि आप की भी कुछ ग़ज़लें वहाँ होती तो ब्लॉग की सुंदरता बढ़ जाती.एक बार अवलोकन कर कुछ रचनाये भेजे जो आपके परिचय के साथ प्रकाशित की जायेगी .आपके पेज पर बहुत सारे उच्च कोटि की बेहतरीन ग़ज़लें हैं,वहाँ से भी संकलित की जा सकती है...एक बार अवलोकन करे.आप लोगो जैसे साहित्यकारों का योगदान चाहिए. आपकी प्रकाशित ग़जलें इस प्रकार दिखेगी (ब्लॉग देखें ) यदि आपको आपति होगी तो प्रकाशित ग़जलें हटा दी जाएगी।
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आपका स्नेहकांक्षी
राजेंद्र कुमार