Thursday, 18 July 2013

ख़त नहीं आते

हुआ   जब   से  शुरू   रम्ज़ान  उनके  ख़त  नहीं  आते । 
हमारी    ज़िंदगी    वीरान   उनके   ख़त   नहीं    आते ॥ 

कभी    होता   है   यूँ  भी  पेट  पर  जब  लात  पड़ती है । 
कि   बेचे   सारे  क़ासिद  पान  उनके  ख़त  नहीं  आते ॥ 

उन्हें   इज़्ज़त  मिली  जब  से   उसीका  ये  नतीजा  है । 
लगा   होने   उन्हें  अभिमान  उनके  ख़त   नहीं  आते ॥ 

विलायत  में  हैं  दादा  फोन  का  स्विच ऑफ रखते हैं । 
परेशानी     में     दादीजान   उनके   ख़त   नहीं   आते ॥ 

परिंदों   जैसे   होते   हैं   विलायत   के   सभी   दिलबर । 
मियाँ   क्यूँ   हो   रहे  हल्कान  उनके  ख़त  नहीं  आते ॥ 

हमारी   जान - ए -जांना   अब  चलाती   हैं  हवाई  बस । 
कभी   लन्दन   कभी   जापान  उनके  ख़त  नहीं  आते ॥ 

सिखा  कर  इश्क़  'सैनी'  को  कभी  डिस्टेंस  लर्निंग से । 
कहाँ   अब  छुप  गए   श्रीमान  उनके  ख़त  नहीं  आते ॥ 

डाo सुरेन्द्र सैनी  

1 comment:

  1. नमस्कार महोदय,

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