Tuesday, 16 July 2013

कुत्ता

मुसीबत  में  हमेशा  डाल   कर रक्खा है बेगम ने । 
मुझे कुत्ता समझ कर पाल कर रक्खा है बेगम ने ॥ 

पड़ोसन ने मंगाली मुझसे सब्जी क्या शराफ़त  में । 
कि रो-रो कर बुरा अब हाल कर रक्खा है बेगम ने ॥   

 निकलने  ही  नहीं  देती  मुझे  घर  से  हवा  खाने । 
 मेरी आज़ादी का दिन टाल कर रक्खा है बेगम ने ॥ 

 निकम्मा  हूँ , निठल्ला  हूँ ,करक्टर से मैं गीला हूँ ।                
 बिना  कंघे  रहूँ  बेबाल   कर  रक्खा   है बेगम  ने ॥ 

मेरे अम्मी-ओ-अब्बू आये घर में छा  गया मातम । 
हज़ारों हैं शिकन मुंह लाल कर रक्खा  है बेगम ने ॥ 

 हमारे  साले-सलहज  आ  गए  तो देखिये घर को । 
 बना कर अब तो नैनीताल कर रक्खा है बेगम ने ॥ 

 पडा  है  'सैनी'  घर  के  एक  कोने  में  लंगोटी  में । 
 न  जाने  कब  से पाएमाल कर रक्खा है बेगम ने ॥ 


 डाo सुरेन्द्र सैनी  

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