मुसीबत में हमेशा डाल कर रक्खा है बेगम ने ।
मुझे कुत्ता समझ कर पाल कर रक्खा है बेगम ने ॥
पड़ोसन ने मंगाली मुझसे सब्जी क्या शराफ़त में ।
कि रो-रो कर बुरा अब हाल कर रक्खा है बेगम ने ॥
निकलने ही नहीं देती मुझे घर से हवा खाने ।
मेरी आज़ादी का दिन टाल कर रक्खा है बेगम ने ॥
निकम्मा हूँ , निठल्ला हूँ ,करक्टर से मैं गीला हूँ ।
बिना कंघे रहूँ बेबाल कर रक्खा है बेगम ने ॥
मेरे अम्मी-ओ-अब्बू आये घर में छा गया मातम ।
हज़ारों हैं शिकन मुंह लाल कर रक्खा है बेगम ने ॥
हमारे साले-सलहज आ गए तो देखिये घर को ।
बना कर अब तो नैनीताल कर रक्खा है बेगम ने ॥
पडा है 'सैनी' घर के एक कोने में लंगोटी में ।
न जाने कब से पाएमाल कर रक्खा है बेगम ने ॥
डाo सुरेन्द्र सैनी
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