मुर्दा आशिक़ पडा है विदाउट कफ़न सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ।
जब न दिलबर की देखी ज़बीं पे शिकन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
लोग दर्ज़ी से जा कर झगड़ने लगे क्यूँ सिलाई हुई महंगी पतलून की ।
ज़िप के आगे नदारद हुए जब बटन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
जब भी अब्बू को दलिया दिया मील में बारहा हाजमे की शिकायत रही ।
आज देखा चबाते हुए जब मटन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
रोज़ मिलता रहा है रक़ीबों से वो और हमको ही झूठा बताता रहा ।
देखी आँखें हमारी नहीं थे बटन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
आ गयी जब गली में वो चंचल हसीँ मेरे बालों ने माँगा है मुझसे ख़िज़ाब ।
मैं भी लेने लगा रोज़ ही जब टशन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
उम्र परवाज़ लेने लगी रात दिन जोश अब वो कलम में रहा ही कहाँ ।
इश्क़ में देख मेरा ये चाल-ओ-चलन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
थी हसीनाओं की रोज़ फ़रमाइशें कुछ अलग ही कहूँ कुछ निराला कहूँ ।
जब न पूरा हुआ 'सैनी' का ये मिशन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
जब न दिलबर की देखी ज़बीं पे शिकन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
लोग दर्ज़ी से जा कर झगड़ने लगे क्यूँ सिलाई हुई महंगी पतलून की ।
ज़िप के आगे नदारद हुए जब बटन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
जब भी अब्बू को दलिया दिया मील में बारहा हाजमे की शिकायत रही ।
आज देखा चबाते हुए जब मटन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
रोज़ मिलता रहा है रक़ीबों से वो और हमको ही झूठा बताता रहा ।
देखी आँखें हमारी नहीं थे बटन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
आ गयी जब गली में वो चंचल हसीँ मेरे बालों ने माँगा है मुझसे ख़िज़ाब ।
मैं भी लेने लगा रोज़ ही जब टशन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
उम्र परवाज़ लेने लगी रात दिन जोश अब वो कलम में रहा ही कहाँ ।
इश्क़ में देख मेरा ये चाल-ओ-चलन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
थी हसीनाओं की रोज़ फ़रमाइशें कुछ अलग ही कहूँ कुछ निराला कहूँ ।
जब न पूरा हुआ 'सैनी' का ये मिशन सब ही क्या बात क्या बात कहने लगे ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी