Monday, 28 April 2014

फ़िक्र-ए -पग़ार

हम सनम के हिसार में घूमें । 
पर सनम तो बिहार में घूमें ॥ 

हम तो पैदल चलें तो मुश्किल है ।
उनके कुत्ते भी कार में घूमें ॥ 

पस्त हो कर शिकम परस्ती में । 
हम तो फ़िक्र-ए -पग़ार में घूमें ॥ 

दूध के दांत भी नहीं टूटे । 
इश्क़ के सब ख़ुमार में घूमें ॥ 

अपने सूबे की फ़िक्र है किसको । 
वो तो यू पी बिहार में घूमें ॥ 

क्या मुदावा  है एसे बच्चों का । 
मस्त हो कर बुख़ार में घूमें ॥ 

साथ दिल के हैं पस्त  घुटने भी । 
कैसे ठंडी बयार में घूमें ॥ 

अब कहाँ जाएंगे रिहा होकर । 
जो तेरे इन्हिसार में घूमें ॥ 

क़र्ज़ 'सैनी'चुकाएगा कब तक । 
लोग सब इन्तेज़ार में घूमें ॥ 

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 2 April 2014

दिमाग़ी ख़लल

छा गया महफ़िल में करके मैं बुराई और की । 
हर ग़ज़ल पर दाद लूटी जब सुनाई और की ॥ 

मैं कुंवारा खाट पर रो-रो के बदलूं करवटें । 
हो रही मेरे ही आँगन में सगाई और की ॥ 

पेट हो जाता है मोटा और थुल-थुल ये बदन । 
रास आ जाए किसी को जब कमाई और की ॥ 

लोग समझाते हैं मुझको रात-दिन ये फ़लसफ़ा । 
अच्छे ख़ुद के बाल-बच्चे पर लुगाई और की ॥ 

तीन तंदूरी चिकन खाके वो सोया रात भर । 
नींद पर अपने खराटों से उड़ाई और की ॥ 

कामयाबी इस तरह उस शख़्स ने पायी यहाँ । 
भैंस अपनी तो बचाई पर चुराई और की ॥ 

आँख के अंधे मेरे दिलबर के हैं अब्बू मियाँ । 
मेरे चक्कर में किये जाएँ धुनाई और की ॥ 

मुफ़्तखोरों के भला क्या आप समझेंगे उसूल । 
आपका खाकर भी करदें ये बड़ाई और की ॥ 

कोयले की की दलाली हाथ काले ही रहे । 
छोड़ दे 'सैनी' तू करनी अब भलाई और की ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी