छा गया महफ़िल में करके मैं बुराई और की ।
हर ग़ज़ल पर दाद लूटी जब सुनाई और की ॥
मैं कुंवारा खाट पर रो-रो के बदलूं करवटें ।
हो रही मेरे ही आँगन में सगाई और की ॥
पेट हो जाता है मोटा और थुल-थुल ये बदन ।
रास आ जाए किसी को जब कमाई और की ॥
लोग समझाते हैं मुझको रात-दिन ये फ़लसफ़ा ।
अच्छे ख़ुद के बाल-बच्चे पर लुगाई और की ॥
तीन तंदूरी चिकन खाके वो सोया रात भर ।
नींद पर अपने खराटों से उड़ाई और की ॥
कामयाबी इस तरह उस शख़्स ने पायी यहाँ ।
भैंस अपनी तो बचाई पर चुराई और की ॥
आँख के अंधे मेरे दिलबर के हैं अब्बू मियाँ ।
मेरे चक्कर में किये जाएँ धुनाई और की ॥
मुफ़्तखोरों के भला क्या आप समझेंगे उसूल ।
आपका खाकर भी करदें ये बड़ाई और की ॥
कोयले की की दलाली हाथ काले ही रहे ।
छोड़ दे 'सैनी' तू करनी अब भलाई और की ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
हर ग़ज़ल पर दाद लूटी जब सुनाई और की ॥
मैं कुंवारा खाट पर रो-रो के बदलूं करवटें ।
हो रही मेरे ही आँगन में सगाई और की ॥
पेट हो जाता है मोटा और थुल-थुल ये बदन ।
रास आ जाए किसी को जब कमाई और की ॥
लोग समझाते हैं मुझको रात-दिन ये फ़लसफ़ा ।
अच्छे ख़ुद के बाल-बच्चे पर लुगाई और की ॥
तीन तंदूरी चिकन खाके वो सोया रात भर ।
नींद पर अपने खराटों से उड़ाई और की ॥
कामयाबी इस तरह उस शख़्स ने पायी यहाँ ।
भैंस अपनी तो बचाई पर चुराई और की ॥
आँख के अंधे मेरे दिलबर के हैं अब्बू मियाँ ।
मेरे चक्कर में किये जाएँ धुनाई और की ॥
मुफ़्तखोरों के भला क्या आप समझेंगे उसूल ।
आपका खाकर भी करदें ये बड़ाई और की ॥
कोयले की की दलाली हाथ काले ही रहे ।
छोड़ दे 'सैनी' तू करनी अब भलाई और की ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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