Sunday, 26 February 2012

उल्लू


उल्लू    हमारे    शहर    के    बीमार   जब  पड़े |
आये    मिज़ाज     पूछने    लीडर     बड़े - बड़े ||

उद्घाटनों   से   हर   घड़ी   फ़ुरसत  उन्हें   कहाँ ?
फ़रियादी   सूख   कर   हुए   काँटा   खड़े - खड़े ||

साँपों   ने  गिरगिटों  ने  सियासत  संभाल  ली |
अब तो गधों  के  भाव  भी  आकाश  तक  अड़े ||

फ़रमा रहे हैं जिसके  पोते  पोतियाँ  भी  इश्क़ |
उस बेवफ़ा की  राह  में  हम  आज  तक  खड़े ||

अम्मा ने जिसकी बदले हों ख़ाविंद कई -कई |
अचरज ही क्या है बेटा अगर दल  बदल लड़े ||

बेग़म  ने स्टे ले लिया   दी   कोर्ट   में दलील |
अब  छोडिये   ये  चोचलें     बच्चे   हुए  बड़े ||

इन  बेहया  वजीरों का  सर  आसमाँ  में  है |
इनके  ज़मीं  में पैर  कहीं  नीचे   तक  गड़े ||

इज़्ज़त में चार चाँद यूं इनकी लगा दे आज |
तू   फेंक   अंडे   और    टमाटर   सड़े - सड़े ||

जीते  हैं  निर्दलीय   चुनावों  में  जो   कभी |
आंधी  के  आम  से उन्ही पे नोट  तब झडे ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Monday, 20 February 2012

बिल्कुल ही आज


बिल्कुल ही आज तो मियाँ ख़राब लाये हो |
ये  कौन  सी  दुकान   से  क़बाब  लाये  हो ||

साज़िश ज़रूर आज कोई  सरफिरे  ने  की |
पानी   मिली  हुई जो  ये   शराब  लाये  हो ||

मुझ को तो फूटी आँख से कभी  नहीं  देखा |
कमज़र्फ   यार  के  लिए  गुलाब  लाये  हो ||

दो  घूँट   आपसे  कभी  उधार  क्या पी ली | 
क्या अपने साथ आज वो हिसाब लाये हो ||

पहले  ही  नंगा  कर चुकी  है  आशिक़ी  तेरी |
अब  कौन  सा  मिरे  लिए अज़ाब  लाये  हो ||

मैंने  सवाल आज   तक   किया  नहीं  कोई |
क्यूँ  बेवजह  ही तल्ख़  ये  जवाब  लाये  हो ||

कहना ही था बुरा भला मुझे तो फिर ये क्यूँ |
बेकार   अपने   साथ   ये  हिजाब  लाये  हो ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Wednesday, 1 February 2012

चाय-पानी से


चाय -पानी    से   फ़क़त   अब   न  मानता  बाबू |
बात    नोटों     की   करे   क़ीमती   हुआ     बाबू ||

लाख  चिल्लाए  या  सर  को  कोई  पीटे अफ़सर |
यूँ   न   फ़ाइल   का   कभी   देता   रास्ता   बाबू ||

अपनी करनी पे वो आ जाए फिर तो क्या कहने |
तब  तो  बन  जाए  तुम्हारा  ही  दिलरुबा   बाबू ||

बात    इससे    तो    हमेशा   करो   सलीक़े   से |
कुछ  ही  नोटों  में ये  ला  देता  ज़लज़ला  बाबू ||

जो   न समझे  है ख़ुदा को समझ ले वो इसको |
अपने  दफ़्तर  का  वो ख़ुद होता है ख़ुदा  बाबू ||

हो  अगर  टेढा  तो  क़ाबू में आ जाए अफ़सर |
पैदा  करता  है  एसा  कोई  सिलसिला  बाबू ||

या   ख़ुदा  मुझको  बचाइये   एसी  नौबत से |
हो  मुक़ाबिल  मेरे  भी  कोई  दिलज़दा बाबू ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी