उल्लू हमारे शहर के बीमार जब पड़े |
आये मिज़ाज पूछने लीडर बड़े - बड़े ||
उद्घाटनों से हर घड़ी फ़ुरसत उन्हें कहाँ ?
फ़रियादी सूख कर हुए काँटा खड़े - खड़े ||
साँपों ने गिरगिटों ने सियासत संभाल ली |
अब तो गधों के भाव भी आकाश तक अड़े ||
फ़रमा रहे हैं जिसके पोते पोतियाँ भी इश्क़ |
उस बेवफ़ा की राह में हम आज तक खड़े ||
अम्मा ने जिसकी बदले हों ख़ाविंद कई -कई |
अचरज ही क्या है बेटा अगर दल बदल लड़े ||
बेग़म ने स्टे ले लिया दी कोर्ट में दलील |
अब छोडिये ये चोचलें बच्चे हुए बड़े ||
इन बेहया वजीरों का सर आसमाँ में है |
इनके ज़मीं में पैर कहीं नीचे तक गड़े ||
इज़्ज़त में चार चाँद यूं इनकी लगा दे आज |
तू फेंक अंडे और टमाटर सड़े - सड़े ||
जीते हैं निर्दलीय चुनावों में जो कभी |
आंधी के आम से उन्ही पे नोट तब झडे ||
डा० सुरेन्द्र सैनी