Sunday, 26 February 2012

उल्लू


उल्लू    हमारे    शहर    के    बीमार   जब  पड़े |
आये    मिज़ाज     पूछने    लीडर     बड़े - बड़े ||

उद्घाटनों   से   हर   घड़ी   फ़ुरसत  उन्हें   कहाँ ?
फ़रियादी   सूख   कर   हुए   काँटा   खड़े - खड़े ||

साँपों   ने  गिरगिटों  ने  सियासत  संभाल  ली |
अब तो गधों  के  भाव  भी  आकाश  तक  अड़े ||

फ़रमा रहे हैं जिसके  पोते  पोतियाँ  भी  इश्क़ |
उस बेवफ़ा की  राह  में  हम  आज  तक  खड़े ||

अम्मा ने जिसकी बदले हों ख़ाविंद कई -कई |
अचरज ही क्या है बेटा अगर दल  बदल लड़े ||

बेग़म  ने स्टे ले लिया   दी   कोर्ट   में दलील |
अब  छोडिये   ये  चोचलें     बच्चे   हुए  बड़े ||

इन  बेहया  वजीरों का  सर  आसमाँ  में  है |
इनके  ज़मीं  में पैर  कहीं  नीचे   तक  गड़े ||

इज़्ज़त में चार चाँद यूं इनकी लगा दे आज |
तू   फेंक   अंडे   और    टमाटर   सड़े - सड़े ||

जीते  हैं  निर्दलीय   चुनावों  में  जो   कभी |
आंधी  के  आम  से उन्ही पे नोट  तब झडे ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

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