Tuesday, 31 July 2012

हुस्न-ओ-जमाल


डरता है साक़ी के जब हुस्न-ओ-जमाल से तू |
घर  बैठ  कर   ही  पीले   मेरे   ख़याल  से  तू ||

ख़ुद  की  टपक   रही   है  घुटनों  पे नाक  तेरे |
पर  दूसरों   के    पोंछे    आंसू  रुमाल   से  तू ||

बेख़ौफ़  होके  जो तू ज़ुल्म-ओ-सितम करे है |
वाक़िफ़ नहीं है अब तक रब के जलाल से तू ||

देखा नहीं जो  उसने इक  बार  पीछे  मुड  के |
आंहे क्यूँ भर रहा है रंज-ओ -मलाल   से  तू ||

क्यों  कर  नहीं   बनायेंगे  लोग  उल्लू  तेरा |
लगता  ही  है  अनाडी ज ब चाल ढाल से तू ||

सब उम्र  कट  गई है   जब  मौत  सामने  है |
अब क्या करेगा आख़िरअपने कमाल से तू ||

बिकने को ‘सैनी ’तेरे जब रू -ब -रू  खडा  है |
बेकार  क्यूँ  फिरे  है  मिलता  दलाल  से  तू ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

Wednesday, 25 July 2012

आम हो जाए


गया  है  बॉस  छुट्टी पर तो इक -इक जाम  हो जाए |
घड़ी  फ़ुर्सत की  है  तो  फिर  ज़रा  आराम  हो  जाए ||

लगाने   आ    गया    अर्ज़ी    बेचारा    गावँ  का  बूढा |
मगर   अर्ज़ी   का  पहले  ही  मुक़र्रर   दाम  हो  जाए ||

रहो घर पर तो बेगम और बच्चों की सुनो चिख-चिख |
यहीं   पर  आज  तो   ये  बस  रंगीली   शाम  हो जाए ||

किसी  ने  लखनऊ  से   भेज   दी  ये  आम  की   पेटी |
तो इक -इक  जाम के पीछे  दशहरी  आम  हो   जाए ||

पियाले  ठीक  से  भरना  किसी को रह न  जाए  कम |
किसी दिन फिर मंगा लेंगे बस अब का काम हो जाए ||

बड़ा  ज़ालिम  हमारा  बॉस   है  सर   पर खडा रहता |
तमाम उसका कहीं पर ए  ख़ुदा  बस  काम  हो जाए ||

समझता है  बड़ा जाहिद ये अपने  आप   को  ‘सैनी ’|
लगा दो मुँह से ज़बरन इसके ये  बदनाम   हो  जाए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 
  

Monday, 16 July 2012

बुढापे का इश्क़


लड़ाने  इश्क़  निकला  है  ये  सत्तर साल  का बूढा |
बताओ  कैसा   पगला  है  ये  सत्तर साल का बूढा ||

नहीं  हैं  दांत मुंह   में  पेट  से  आंतें  भी  ग़ायब हैं |
ज़बां  से  भी  तो  हकला है ये सत्तर  साल का बूढा || 

घटाओं  सी  नज़र  आती हैं ज़ुल्फ़ें इसके चेहरे पर |
मगर बिलकुल ही टकला है ये सत्तर साल का बूढा || 

ख्यालों  में  जवानी के ये अब  भी  खोया रहता है |
ज़रा  भी  तो न बदला है  ये  सत्तर  साल  का बूढा ||

जवानी  ढूंढता  रहता है अख़बारों  के  नुस्ख़ों   में |
दिखावे  का ही दुबला है ये  सत्तर  साल  का  बूढा || 

ज़माना  कुछ  कहे इसकी बला से इसके ठेंगे  से |
बड़ा  बेशर्म  निकला है ये  सत्तर  साल  का  बूढा || 

अगरचे घर में है  मौजूद   इसके   पांचवी   बीबी |
मगर हर रू पे फिसला है ये सत्तर साल  का बूढा || 

कहीं पर भी हमें रखने नहीं  इसने  दिया है हाथ |
सभी का बाप निकला है ये सत्तर  साल का बूढा || 

जवानी छटपटाती   है करे  क्या  ‘सैनी ’ बेचारा |
ज़ियादा हमसे मचला है ये  सत्तर साल का बूढा || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी       

Friday, 13 July 2012

फ़ज़ीहत होगी


छेड़  कर  उनको  चलोगे  तो  फ़ज़ीहत  होगी |
जब   हसीनो   से  पिटोगे तो  फ़ज़ीहत  होगी || 

आज  वादा  जो  किया  चाट खिलाने का उन्हें |
अपने   वादे   से  फिरोगे  तो   फ़ज़ीहत  होगी || 

हुस्न फूफी का भी उनकी है क़यामत की तरह |
उनकी  फूफी   पे   मरोगे  तो  फ़ज़ीहत  होगी ||

वो   कभी  ख़ुद  ही  हटा  देती हैं  रुख़  से पर्दा |
आप  ये  उनसे  कहोगे   तो   फ़ज़ीहत  होगी || 

जेब  अगर  साथ  दे  तो  रोज़  ही  पीजे दारू |
रोज़  क़र्ज़े   की  पियोगे  तो  फ़ज़ीहत होगी || 

छीन अम्मी ने लिया उनसे जो अब मोबाइल |
फोन  तुम  उनको  करोगे तो फ़ज़ीहत  होगी || 

साथ   बुल्डोग    ख़तरनाक    बड़े  चलते   हैं |
तंज़  अगर  उनपे  करोगे तो  फ़ज़ीहत होगी || 

आजकल  इश्क़  में  भी  जेब  देखी  जाती  है |
इश्क़  अमीरों  से  करोगे तो  फ़ज़ीहत  होगी ||

काम उसका तो है लोगों  को  बनाना  उल्लू  |
बात  ‘सैनी ’की  सुनोगे  तो  फ़ज़ीहत  होगी || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी