डरता है साक़ी के जब हुस्न-ओ-जमाल से तू |
घर बैठ कर ही पीले मेरे ख़याल से तू ||
ख़ुद की टपक रही है घुटनों पे नाक तेरे |
पर दूसरों के पोंछे आंसू रुमाल से तू ||
बेख़ौफ़ होके जो तू ज़ुल्म-ओ-सितम करे है |
वाक़िफ़ नहीं है अब तक रब के जलाल से तू ||
देखा नहीं जो उसने इक बार पीछे मुड के |
आंहे क्यूँ भर रहा है रंज-ओ -मलाल से तू ||
क्यों कर नहीं बनायेंगे लोग उल्लू तेरा |
लगता ही है अनाडी ज ब चाल ढाल से तू ||
सब उम्र कट गई है जब मौत सामने है |
अब क्या करेगा आख़िरअपने कमाल से तू ||
बिकने को ‘सैनी ’तेरे जब रू -ब -रू खडा है |
बेकार क्यूँ फिरे है मिलता दलाल से तू ||
डा० सुरेन्द्र सैनी