गया है बॉस छुट्टी पर तो इक -इक जाम हो जाए |
घड़ी फ़ुर्सत की है तो फिर ज़रा आराम हो जाए ||
लगाने आ गया अर्ज़ी बेचारा गावँ का बूढा |
मगर अर्ज़ी का पहले ही मुक़र्रर दाम हो जाए ||
रहो घर पर तो बेगम और बच्चों की सुनो चिख-चिख |
यहीं पर आज तो ये बस रंगीली शाम हो जाए ||
किसी ने लखनऊ से भेज दी ये आम की पेटी |
तो इक -इक जाम के पीछे दशहरी आम हो जाए ||
पियाले ठीक से भरना किसी को रह न जाए कम |
किसी दिन फिर मंगा लेंगे बस अब का काम हो जाए ||
बड़ा ज़ालिम हमारा बॉस है सर पर खडा रहता |
तमाम उसका कहीं पर ए ख़ुदा बस काम हो जाए ||
समझता है बड़ा जाहिद ये अपने आप को ‘सैनी ’|
लगा दो मुँह से ज़बरन इसके ये बदनाम हो जाए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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