Wednesday, 25 July 2012

आम हो जाए


गया  है  बॉस  छुट्टी पर तो इक -इक जाम  हो जाए |
घड़ी  फ़ुर्सत की  है  तो  फिर  ज़रा  आराम  हो  जाए ||

लगाने   आ    गया    अर्ज़ी    बेचारा    गावँ  का  बूढा |
मगर   अर्ज़ी   का  पहले  ही  मुक़र्रर   दाम  हो  जाए ||

रहो घर पर तो बेगम और बच्चों की सुनो चिख-चिख |
यहीं   पर  आज  तो   ये  बस  रंगीली   शाम  हो जाए ||

किसी  ने  लखनऊ  से   भेज   दी  ये  आम  की   पेटी |
तो इक -इक  जाम के पीछे  दशहरी  आम  हो   जाए ||

पियाले  ठीक  से  भरना  किसी को रह न  जाए  कम |
किसी दिन फिर मंगा लेंगे बस अब का काम हो जाए ||

बड़ा  ज़ालिम  हमारा  बॉस   है  सर   पर खडा रहता |
तमाम उसका कहीं पर ए  ख़ुदा  बस  काम  हो जाए ||

समझता है  बड़ा जाहिद ये अपने  आप   को  ‘सैनी ’|
लगा दो मुँह से ज़बरन इसके ये  बदनाम   हो  जाए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 
  

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