Monday, 16 July 2012

बुढापे का इश्क़


लड़ाने  इश्क़  निकला  है  ये  सत्तर साल  का बूढा |
बताओ  कैसा   पगला  है  ये  सत्तर साल का बूढा ||

नहीं  हैं  दांत मुंह   में  पेट  से  आंतें  भी  ग़ायब हैं |
ज़बां  से  भी  तो  हकला है ये सत्तर  साल का बूढा || 

घटाओं  सी  नज़र  आती हैं ज़ुल्फ़ें इसके चेहरे पर |
मगर बिलकुल ही टकला है ये सत्तर साल का बूढा || 

ख्यालों  में  जवानी के ये अब  भी  खोया रहता है |
ज़रा  भी  तो न बदला है  ये  सत्तर  साल  का बूढा ||

जवानी  ढूंढता  रहता है अख़बारों  के  नुस्ख़ों   में |
दिखावे  का ही दुबला है ये  सत्तर  साल  का  बूढा || 

ज़माना  कुछ  कहे इसकी बला से इसके ठेंगे  से |
बड़ा  बेशर्म  निकला है ये  सत्तर  साल  का  बूढा || 

अगरचे घर में है  मौजूद   इसके   पांचवी   बीबी |
मगर हर रू पे फिसला है ये सत्तर साल  का बूढा || 

कहीं पर भी हमें रखने नहीं  इसने  दिया है हाथ |
सभी का बाप निकला है ये सत्तर  साल का बूढा || 

जवानी छटपटाती   है करे  क्या  ‘सैनी ’ बेचारा |
ज़ियादा हमसे मचला है ये  सत्तर साल का बूढा || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी       

No comments:

Post a Comment