Wednesday, 29 August 2012

हुस्न की हड़ताल


हुस्न  वालो   की   हड़ताल  है |
आशिक़ों   का   बुरा   हाल  है ||

चल सियासत में रक्खें क़दम |
कुर्सी  पैसों  की   टकसाल   है ||

सब के मुहं पर यही एक बात |
आज    सरकार    बेहाल    है ||

नुक़्ता  चीं  है   हमारा  सनम |
नोचता    बाल   की  खाल  है ||

ज़ुर्मपेशा     बशर    के  लिए |
बस सियासत ही  तो ढाल है ||

मेरी  बेगम  को  फ़ुर्सत  नहीं |
घर   के पिछवाड़े ससुराल है ||

अस्ल  ख़ातून की   उम्र  क्या |
घटती  जाती  वो  हर साल है ||

सात  बच्चें   हैं  बेगम  कड़क |
शख़्स कितना वो ख़ुशहाल है ||

इश्क़ ‘सैनी ‘से अब क्या करें |
वो  तो  पहले   ही  कंगाल  है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Monday, 20 August 2012

कहीं पे निगाहें


कहीं   पे   निगाहें   कहीं   पे  निशाना |
कभी  साथ  सलमा  कभी   है शबाना ||

किसी  एक  ही   क्यूँ   पीछे   पड़े  हम | 
हुआ  इश्क़  का  ये  तो  फैशन पुराना ||

नहीं   इश्क़   है   ये   मिठाई  के  जैसा |
चने   लोहे   के   भी   पड़े   हैं    चबाना ||

ज़बीं  पर  लिखा  क्या  न जाने हमारी |
हसीना   न  चाहे   कोई   पास    आना ||

ज़बरदस्ती  मेरी   करा   दी   है   शादी |
उसी  दिन  से   भूला  हूँ मैं मुस्कुराना ||

बड़ी   मुश्किलों  से  पटी   इक हसीना |
पडा  रोज़  ही  उसका    कुत्ता  घुमाना ||

पिटाई  से  बचना  अगर  इश्क़  में हो |
कभी नुस्ख़ा ‘सैनी ’का भी आज़माना ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी    
        


Thursday, 16 August 2012

नज़रें फूफी पर


यक़ीनन  मैं  तुझे  हद  से  ज़ियादा प्यार करता हूँ |
बुरा मत मान लेकिन मैं तेरी   फूफी  पे  मरता  हूँ ||

तेरी  सोचों  पे  हावी  याद  उसकी  हो  ही  जाती  है |
लिखूं ख़त में मैं तेरा नाम पर फूफी का लिखता हूँ ||

फ़क़त  मैं  ही  नहीं  थोड़ा  इशारा   है  उधर  से भी |
फंसा हूँ मैं भवंर में  आज मैं  जीता   न  मरता  हूँ ||

तुम्हारे   बाप   ,ताऊ  ,चाचा  ,भाईजान  के  तेवर |
मुझे  अच्छे  नहीं  लगते  हैं  मैं पिटने से डरता हूँ ||

तुम्हारी  फूफी मुझको देखकर जब आह भरती है |
तुम्हारे  फूफा  को मैं गालियाँ तब खूब बकता  हूँ ||

रहेगी  जब  तलक  घर में तुम्हारी फूफी बतला दू |
ये शादी हो नहीं सकती मैं  दावा  आज  करता  हूँ ||

कहो  ‘सैनी ’से  फूफा  और  फूफी   घर  चले  जाएँ|
मैं तब तक अपने घर में पडा आँखों को मलता हूँ ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी