कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना |
कभी साथ सलमा कभी है शबाना ||
किसी एक ही क्यूँ पीछे पड़े हम |
हुआ इश्क़ का ये तो फैशन पुराना ||
नहीं इश्क़ है ये मिठाई के जैसा |
चने लोहे के भी पड़े हैं चबाना ||
ज़बीं पर लिखा क्या न जाने हमारी |
हसीना न चाहे कोई पास आना ||
ज़बरदस्ती मेरी करा दी है शादी |
उसी दिन से भूला हूँ मैं मुस्कुराना ||
बड़ी मुश्किलों से पटी इक हसीना |
पडा रोज़ ही उसका कुत्ता घुमाना ||
पिटाई से बचना अगर इश्क़ में हो |
कभी नुस्ख़ा ‘सैनी ’का भी आज़माना ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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