यक़ीनन मैं तुझे हद से ज़ियादा प्यार करता हूँ |
बुरा मत मान लेकिन मैं तेरी फूफी पे मरता हूँ ||
तेरी सोचों पे हावी याद उसकी हो ही जाती है |
लिखूं ख़त में मैं तेरा नाम पर फूफी का लिखता हूँ ||
फ़क़त मैं ही नहीं थोड़ा इशारा है उधर से भी |
फंसा हूँ मैं भवंर में आज मैं जीता न मरता हूँ ||
तुम्हारे बाप ,ताऊ ,चाचा ,भाईजान के तेवर |
मुझे अच्छे नहीं लगते हैं मैं पिटने से डरता हूँ ||
तुम्हारी फूफी मुझको देखकर जब आह भरती है |
तुम्हारे फूफा को मैं गालियाँ तब खूब बकता हूँ ||
रहेगी जब तलक घर में तुम्हारी फूफी बतला दू |
ये शादी हो नहीं सकती मैं दावा आज करता हूँ ||
कहो ‘सैनी ’से फूफा और फूफी घर चले जाएँ|
मैं तब तक अपने घर में पडा आँखों को मलता हूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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