Thursday, 16 August 2012

नज़रें फूफी पर


यक़ीनन  मैं  तुझे  हद  से  ज़ियादा प्यार करता हूँ |
बुरा मत मान लेकिन मैं तेरी   फूफी  पे  मरता  हूँ ||

तेरी  सोचों  पे  हावी  याद  उसकी  हो  ही  जाती  है |
लिखूं ख़त में मैं तेरा नाम पर फूफी का लिखता हूँ ||

फ़क़त  मैं  ही  नहीं  थोड़ा  इशारा   है  उधर  से भी |
फंसा हूँ मैं भवंर में  आज मैं  जीता   न  मरता  हूँ ||

तुम्हारे   बाप   ,ताऊ  ,चाचा  ,भाईजान  के  तेवर |
मुझे  अच्छे  नहीं  लगते  हैं  मैं पिटने से डरता हूँ ||

तुम्हारी  फूफी मुझको देखकर जब आह भरती है |
तुम्हारे  फूफा  को मैं गालियाँ तब खूब बकता  हूँ ||

रहेगी  जब  तलक  घर में तुम्हारी फूफी बतला दू |
ये शादी हो नहीं सकती मैं  दावा  आज  करता  हूँ ||

कहो  ‘सैनी ’से  फूफा  और  फूफी   घर  चले  जाएँ|
मैं तब तक अपने घर में पडा आँखों को मलता हूँ ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी   

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