Tuesday, 12 July 2011

जिसने समझी न बारीकियाँ

जिसने  समझी  न बारीकियाँ |
इश्क़  में  उठ   गयीं  अर्थियाँ ||

कुछ  तो  थी  आपकी   ख़ामियाँ |
वर्ना    क्यूँ  मिलती  नाकामियाँ ?

इस   तरह  लो   न    अंगडाइयां |
आ   न   जाएँ   कहीं    आँधियाँ ?

दर्दे     दिल   कैसे   करते  बयाँ ?
वो     दिखाते      रहे    शोखियाँ |

उनको    ले    बैठी    चालाकियाँ |
आ    रहे   याद      अल्लामियाँ || 

क्या     करेगीं     बता   घंटियाँ ?
हर  तरफ़  बिल्लियाँ  बिल्लियाँ ||

दाद      लूटी     मिली    तालियाँ |
किसकी  लाये  ग़ज़ल   ये  मियाँ ?

                                            डा० सुरेन्द्र सैनी 

Thursday, 7 July 2011

हमारी आन जाएगी

हमारी    आन    जाएगी    हमारी    शान   जायेगी |
इसी चक्कर में बस इक दिन हमारी जान जायेगी ||

तुम्हारा  मूड  उखडा  है  चलो  पिक्चर दिखा लाऊँ |
लगी  है  आज  टाकिज  में  हसीना  मान  जायेगी ||

मुखौटा क्यूँ लगाते  हो  मियाँ  बेकार  चेहरे   पर ?
हक़ीक़त  एक दिन दुनिया ये  सारी जान जायेगी ||

अगर दहलीज़ की बंदिश है चल चलते हैं मैख़ाने |
न  तेरी  शान  जायेगी  न  मेरी   आन   जायेगी ||

बड़ी तिगडम से पायी है ये कुर्सी डर लगा रहता |
गई कुर्सी तो उसके  साथ ज़र की कान जायेगी ||

                                                                              डा० सुरेन्द्र सैनी 

Wednesday, 6 July 2011

रूठे दिलदार को क्या मनाना हुआ |

रूठे    दिलदार    को    क्या   मनाना हुआ |
बर्फ़   सूरज   के   घर    में  जमाना  हुआ ||

उनका   ग़ैरों   के   घर   आना  जाना  हुआ |
यूँ   मेरे   दिल   पे   बिजली गिराना  हुआ ||

उनके   अब्बा   को    गुज़रे   ज़माना  हुआ |
तब    कहीं    जाके    कूचे में  जाना  हुआ ||

उनके   पत्थर   का   ये   सर निशाना  हुआ |
वाह    जी    क्या   ख़ूब कव्वे उडाना  हुआ ||

ज़र   के    लालच    में शादी रचाना  हुआ |
अपनी   किस्मत   पे   आंसू   बहाना  हुआ ||

उनके    कुत्ते    को    सर  पे  चढ़ाना  हुआ |
जी   का     जंजाल   उसका   घुमाना   हुआ ||

उनकी   फ़ुरक़त   में   जी   का जलाना हुआ |
मैक़दा    अब    तो    अपना   ठिकाना हुआ ||

उनका   नज़रों   से   मुझको   गिराना   हुआ |
और     ढूंढा     नया    मैं      पुराना    हुआ ||

उनको     लोगों   का   पट्टी   पढ़ाना   हुआ | 
गोया  घर    दूसरों    का    जलाना    हुआ ||

उनका बन ठन के महफ़िल में आना हुआ |
फ्यूज़ बल्बों  का  फिर  टिमटिमाना हुआ ||

                                                                     डा० सुरेन्द्र सैनी 

पहले जनाब पिटने की

पहले  जनाब  पिटने  की  आदत  तो  डालिए |
फिर  बागडोर इश्क़ की जम कर सम्भालिए ||

ख़ातिर  को   मेरी  कूच -ए-जाना  में   दोस्तों |
उसने   तमाम   शहर   के   गुण्डे  बुला  लिए ||

हसरत   भरी   निगाह   से   देखा  ही  था  उसे |
लोगों   ने   मेरी  मौत   के   सामाँ  जुटा  लिए ||

मुद्दत  के  बाद  आज  कुछ  कर्फ्यु  में  ढील  है |
लिल्लाह इस मिलन को यूँ कल पर न टालिए ||

सिक्कों  में  तुलने  के  लिए  लीडर  बुलाये   हैं |
रुपया   अठन्नी   आप   भी  थाली  में  डालिए ||

मेरा  जनाज़ा  देख  के  अब्बा  ने  उसके  आज |
जितने  भी  पहरे  उस  पे   थे  सारे  उठा  लिए ||

अगले   की  आरज़ू  जो  की  बीवी  ने  यूँ  कहा |
पहले  जो  हो   चुके  हैं  उन्ही  को  सम्भालिए ||

कल  शाम  उनकी  बज़्म में मैं क्या चला गया |
लोगों   ने   अपने   हाथों   में   जूते  उठा  लिए ||

                                                                     डा० सुरेन्द्र सैनी

Tuesday, 5 July 2011

आशिक़ी में मिटे हुए हैं |

आशिक़ी   में    मिटे    हुए  हैं |
मजनू  हम  भी  छंटे  हुए   हैं ||

देख बीमार -ए-ग़म की हालत |
मुंह   पे  बारह  बजे   हुए    हैं ||

लिफ्ट क्या दे दी बस ज़रा सी |
अब   गले   में  पड़े   हुए    हैं ||

जीत    लें    कैसे    इल्क्शन |
अब  के  वोटर  पढ़े  हुए    हैं ||

क्या  भरोसा  करे किसी का ?
पत्ते    सारे   पिटे    हुए     हैं ||

खाईये    ग़म    के    पकौड़े  |
आंसुओं   में  तले   हुए    हैं ||

                                             डा० सुरेन्द्र सैनी