Wednesday, 6 July 2011

रूठे दिलदार को क्या मनाना हुआ |

रूठे    दिलदार    को    क्या   मनाना हुआ |
बर्फ़   सूरज   के   घर    में  जमाना  हुआ ||

उनका   ग़ैरों   के   घर   आना  जाना  हुआ |
यूँ   मेरे   दिल   पे   बिजली गिराना  हुआ ||

उनके   अब्बा   को    गुज़रे   ज़माना  हुआ |
तब    कहीं    जाके    कूचे में  जाना  हुआ ||

उनके   पत्थर   का   ये   सर निशाना  हुआ |
वाह    जी    क्या   ख़ूब कव्वे उडाना  हुआ ||

ज़र   के    लालच    में शादी रचाना  हुआ |
अपनी   किस्मत   पे   आंसू   बहाना  हुआ ||

उनके    कुत्ते    को    सर  पे  चढ़ाना  हुआ |
जी   का     जंजाल   उसका   घुमाना   हुआ ||

उनकी   फ़ुरक़त   में   जी   का जलाना हुआ |
मैक़दा    अब    तो    अपना   ठिकाना हुआ ||

उनका   नज़रों   से   मुझको   गिराना   हुआ |
और     ढूंढा     नया    मैं      पुराना    हुआ ||

उनको     लोगों   का   पट्टी   पढ़ाना   हुआ | 
गोया  घर    दूसरों    का    जलाना    हुआ ||

उनका बन ठन के महफ़िल में आना हुआ |
फ्यूज़ बल्बों  का  फिर  टिमटिमाना हुआ ||

                                                                     डा० सुरेन्द्र सैनी 

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