बर्फ़ सूरज के घर में जमाना हुआ ||
उनका ग़ैरों के घर आना जाना हुआ |
यूँ मेरे दिल पे बिजली गिराना हुआ ||
उनके अब्बा को गुज़रे ज़माना हुआ |
तब कहीं जाके कूचे में जाना हुआ ||
उनके पत्थर का ये सर निशाना हुआ |
वाह जी क्या ख़ूब कव्वे उडाना हुआ ||
ज़र के लालच में शादी रचाना हुआ |
अपनी किस्मत पे आंसू बहाना हुआ ||
उनके कुत्ते को सर पे चढ़ाना हुआ |
जी का जंजाल उसका घुमाना हुआ ||
उनकी फ़ुरक़त में जी का जलाना हुआ |
मैक़दा अब तो अपना ठिकाना हुआ ||
उनका नज़रों से मुझको गिराना हुआ |
और ढूंढा नया मैं पुराना हुआ ||
उनको लोगों का पट्टी पढ़ाना हुआ |
गोया घर दूसरों का जलाना हुआ ||
उनका बन ठन के महफ़िल में आना हुआ |
फ्यूज़ बल्बों का फिर टिमटिमाना हुआ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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