आशिक़ी में मिटे हुए हैं |
मजनू हम भी छंटे हुए हैं ||
देख बीमार -ए-ग़म की हालत |
मुंह पे बारह बजे हुए हैं ||
लिफ्ट क्या दे दी बस ज़रा सी |
अब गले में पड़े हुए हैं ||
जीत लें कैसे इल्क्शन |
अब के वोटर पढ़े हुए हैं ||
क्या भरोसा करे किसी का ?
पत्ते सारे पिटे हुए हैं ||
खाईये ग़म के पकौड़े |
आंसुओं में तले हुए हैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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