Wednesday, 21 December 2011

बिल न भर के


बिल  न  भर के  मुस्कुराये मेहरबानी आपकी |
मुफ़्त   में   खाई   दवा   है   क़द्रदानी  आपकी ||

और इस दुनिया में क्या हैं मौत के बाइस भला |
एक पब्लिक होस्पीटल  एक  जवानी  आपकी ||

सकपकाते अब मैं जिसको कह न पाऊँ शर्म से |
सर  के  गूमड़  ने  सुना  दी  मेज़बानी  आपकी ||

आपको  मैंने  मनाया  फिर  जहाँ   को  आपने |
और सब माने मगर  एक माँ न मानी आपकी ||

क्या करूँ अब्बा से शिकव:और अम्मी से गिला |
मेरी क़िस्मत में लिखी   है डांट खानी  आपकी ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Thursday, 15 December 2011

हम उनको छेड़ (स्टुडेंट लाइफ से १९७५ )


हम  उनको  छेड़  छाड़ के अन्जान बन गए |
पर  हाय  ताजपोशी  के  सामान  बन  गए ||

हालत को सर की देख कर अब्बा ने यूँ कहा |
शाबाश  बेटा  मजनूँ  की  संतान  बन  गए ||

वादा  किया  था  आपने  ठहरेंगे  एक  दिन |
क्यूँ  अब तमाम  उम्र के  मेहमान बन गए ||

हसरत तो उनसे मिलने की पूरी न हो सकी  |
आख़िर  उन्हीं  के  गेट  के  दरबान  बन गए ||

पिट पिट के नाम इश्क़ में इतना कमा लिया |
हम  आशिक़ी की आज तो पहचान बन गए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Tuesday, 13 December 2011

अचानक मिल गई


अचानक  मिल  गई  उनकी  सहेली  आज  रस्ते  में |
गई  सुलझा  के  मेरी   सब  पहेली  आज  रस्ते  में ||

हुई  आमद  जो  उनकी  धूप भी शरमा गई झट से |
उसी  पल  ने  हमारी  जान  ले  ली आज  रस्ते में ||

घुमा कर कौन से रस्ते से मुझको आज  ले आये |
नज़र  आई  नहीं  उनकी  हवेली  आज  रस्ते में || 

मिलेगी हुस्न की दौलत कहीं से आज  तो शायद |
बहुत  खुजला  रही  मेरी   हथेली  आज रस्ते  में || 

बड़े गर्द -ओ -गुबार -ओ -जाम से भरपूर था रस्ता |
मुसीबत पूछिए किसने न   झेली  आज  रस्ते  में ||

ख़बर  पक्की  हमें  दी  आज तो उनकी  सहेली  ने |
मिलेगी  वो  हमें  बिलकुल अकेली आज रस्ते में || 

उसी का भेष भर -भर कर सफ़र में आ गए सारे |
रक़ीबों  ने ग़ज़ब की चाल खेली  आज   रस्ते  में ||  

करिश्माई गुरू घंटाल की बातों  में यूँ  फँस कर |
बने सब उसके चेला और चेली  आज  रस्ते  में || 

अकेले  हम  चले ये सोच कर होगें  अकेले  वो |
मिली पर साथ में चम्पा चमेली आज रस्ते में || 

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Thursday, 8 December 2011

तलुवे मलता


तलुवे   मलता   नौकर   है |
सपने  बुनता   अफ़सर  है ||

दफ़्तर वाले  हैं  सब  गुम   |
अफ़सर भी तो  घर पर  है ||

रपटों   में अच्छी   फसलें |
पर  धरती  तो    बंजर  है ||

अर्ज़ी   बाबू   ने   ले    ली |
अब साहब के  ऊपर    है ||

तेवर  उसके   दरिया से  |
कहने को क़तरा   भर है ||

तन्हा   इक  तूफाँ   में  मैं |
सारा   कुनबा  घर पर है ||

तासीर इसकी शबनम सी |
शोला   इसके    भीतर  है ||

ये  वालिद  ज़रदारों  का |
क्यूँ     बेचारा   बेघर  है ?

बाहर  क्यूँ   ढूंढा  तुमने ?
दुश्मन घर के  भीतर है ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी