Wednesday, 21 December 2011

बिल न भर के


बिल  न  भर के  मुस्कुराये मेहरबानी आपकी |
मुफ़्त   में   खाई   दवा   है   क़द्रदानी  आपकी ||

और इस दुनिया में क्या हैं मौत के बाइस भला |
एक पब्लिक होस्पीटल  एक  जवानी  आपकी ||

सकपकाते अब मैं जिसको कह न पाऊँ शर्म से |
सर  के  गूमड़  ने  सुना  दी  मेज़बानी  आपकी ||

आपको  मैंने  मनाया  फिर  जहाँ   को  आपने |
और सब माने मगर  एक माँ न मानी आपकी ||

क्या करूँ अब्बा से शिकव:और अम्मी से गिला |
मेरी क़िस्मत में लिखी   है डांट खानी  आपकी ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

No comments:

Post a Comment