Tuesday, 13 December 2011

अचानक मिल गई


अचानक  मिल  गई  उनकी  सहेली  आज  रस्ते  में |
गई  सुलझा  के  मेरी   सब  पहेली  आज  रस्ते  में ||

हुई  आमद  जो  उनकी  धूप भी शरमा गई झट से |
उसी  पल  ने  हमारी  जान  ले  ली आज  रस्ते में ||

घुमा कर कौन से रस्ते से मुझको आज  ले आये |
नज़र  आई  नहीं  उनकी  हवेली  आज  रस्ते में || 

मिलेगी हुस्न की दौलत कहीं से आज  तो शायद |
बहुत  खुजला  रही  मेरी   हथेली  आज रस्ते  में || 

बड़े गर्द -ओ -गुबार -ओ -जाम से भरपूर था रस्ता |
मुसीबत पूछिए किसने न   झेली  आज  रस्ते  में ||

ख़बर  पक्की  हमें  दी  आज तो उनकी  सहेली  ने |
मिलेगी  वो  हमें  बिलकुल अकेली आज रस्ते में || 

उसी का भेष भर -भर कर सफ़र में आ गए सारे |
रक़ीबों  ने ग़ज़ब की चाल खेली  आज   रस्ते  में ||  

करिश्माई गुरू घंटाल की बातों  में यूँ  फँस कर |
बने सब उसके चेला और चेली  आज  रस्ते  में || 

अकेले  हम  चले ये सोच कर होगें  अकेले  वो |
मिली पर साथ में चम्पा चमेली आज रस्ते में || 

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

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