Thursday, 8 December 2011

तलुवे मलता


तलुवे   मलता   नौकर   है |
सपने  बुनता   अफ़सर  है ||

दफ़्तर वाले  हैं  सब  गुम   |
अफ़सर भी तो  घर पर  है ||

रपटों   में अच्छी   फसलें |
पर  धरती  तो    बंजर  है ||

अर्ज़ी   बाबू   ने   ले    ली |
अब साहब के  ऊपर    है ||

तेवर  उसके   दरिया से  |
कहने को क़तरा   भर है ||

तन्हा   इक  तूफाँ   में  मैं |
सारा   कुनबा  घर पर है ||

तासीर इसकी शबनम सी |
शोला   इसके    भीतर  है ||

ये  वालिद  ज़रदारों  का |
क्यूँ     बेचारा   बेघर  है ?

बाहर  क्यूँ   ढूंढा  तुमने ?
दुश्मन घर के  भीतर है ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी    

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