हम उनको छेड़ छाड़ के अन्जान बन गए |
पर हाय ताजपोशी के सामान बन गए ||
हालत को सर की देख कर अब्बा ने यूँ कहा |
शाबाश बेटा मजनूँ की संतान बन गए ||
वादा किया था आपने ठहरेंगे एक दिन |
क्यूँ अब तमाम उम्र के मेहमान बन गए ||
हसरत तो उनसे मिलने की पूरी न हो सकी |
आख़िर उन्हीं के गेट के दरबान बन गए ||
पिट पिट के नाम इश्क़ में इतना कमा लिया |
हम आशिक़ी की आज तो पहचान बन गए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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