Thursday, 15 December 2011

हम उनको छेड़ (स्टुडेंट लाइफ से १९७५ )


हम  उनको  छेड़  छाड़ के अन्जान बन गए |
पर  हाय  ताजपोशी  के  सामान  बन  गए ||

हालत को सर की देख कर अब्बा ने यूँ कहा |
शाबाश  बेटा  मजनूँ  की  संतान  बन  गए ||

वादा  किया  था  आपने  ठहरेंगे  एक  दिन |
क्यूँ  अब तमाम  उम्र के  मेहमान बन गए ||

हसरत तो उनसे मिलने की पूरी न हो सकी  |
आख़िर  उन्हीं  के  गेट  के  दरबान  बन गए ||

पिट पिट के नाम इश्क़ में इतना कमा लिया |
हम  आशिक़ी की आज तो पहचान बन गए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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