Tuesday, 20 March 2012

होली का ख़ुमार


पकौड़ी   में   खिला   दी   दोस्तों   ने   भांग   होली   में |
नशे   में   गिर   पड़े   गड्ढे    में   टूटी  टांग  होली  में ||

रुख़ -ए-रोशन पे कीचड का मुलम्मा क्या क़यामत था |
कि   जैसे   हो  गया  सारा  ही   सोना  रांग   होली   में ||

नयी चाची  को पहुंचे  रंग  लगाने   हम  शराफ़त  से |
अड़ा  दी  एन   मौक़े  पर  चचा   ने   टांग   होली  में ||

बिखर   के रह गए  अरमान  सारे  उनको रंगने  के |
नयी  साड़ी  की बीवी   ने जो कर दी मांग  होली में ||

ख़ुमारी भांग की उतरी तो उसने  की  तभी  तौबा |
पिलाएगा न ‘सैनी ’ख़ुद  पिएगा  भांग  होली  में ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Monday, 12 March 2012

रक़ीब


मेरे   ख़िलाफ़    उनके   कान   भर   गया   रक़ीब |
एसी   की   तेसी   मेरी   आज   कर  गया  रक़ीब ||

दो   चार   दिन   ही   वो   फ़क़त  नज़र  नहीं  पडा |
मुझको   रहा   मुग़ालता   कि   डर   गया   रक़ीब ||

वो  कब  का  क़ब्र   फाड़   कर  निकल  के आ गया |
मैं   सोचता   रहा   कि   अब  तो  मर  गया  रक़ीब ||

सारी     सुलह    की    कोशिशें    फ़ुज़ूल   ही   गयीं |
अपनी   ही   बात   से   सदा   मुकर   गया   रक़ीब ||

चूना   लगा   गया   वो    आशिक़ों     को    बेधड़क |
जिस - जिस जगह से जब कभी गुज़र गया रक़ीब ||

तब    ही    खड़ी    हुई    हैं     मुश्किलें   बड़ी - बड़ी |
जब -जब  ज़रा  सी  बात  पे  बिफर   गया  रक़ीब ||

घर   से   निकलिए  आप  करके  घर की चोकसी |
निकले   इधर   से  आप  बस  उधर  गया  रक़ीब ||

बारह    बजा    रही   है  शक्ल  आपकी  भी  अब |
क्या  इश्क  का  मज़ा  ख़राब  कर   गया  रक़ीब ||

बदला मिज़ाज  -ए -आशिक़ी बदल गया है प्यार |
क्यों  आप  सोचते  हैं    अब  सुधर  गया  रक़ीब ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Tuesday, 6 March 2012

इस बार होली में


कहीँ पीकर फिसल जाएँ  न हम इस बार होली में |
न पीने की उठाली है  क़सम   इस  बार  होली  में ||



बड़ी मुश्किल से माने हैं सनम इस बार होली  में |
मिलेगी बस हमें दो घूँट  रम  इस  बार  होली  में ||

तमन्ना   है   पियेंगे   दोस्तों   में   ख़ूब  फ़ुर्सत  से |
ज़रा बेग़म से बस बच जाए हम इस बार होली में || 

बड़ी   ही  ख़ूबरू   शक्लें  अभी  आयीं   कालोनी  में |
हमारे   घर   धरेंगी  वो  क़दम  इस  बार  होली  में || 

बड़ी   चालाक   हैं   बेग़म   बड़ी    तैयारियां  की   हैं |
निकालेंगी  हमारे  पेंचो -ख़म   इस   बार  होली  में || 

महीने  के  ये  दिन  हैं  आख़िरी  अब  जेब ख़ाली है |
कि महंगाई से निकला यार दम इस बार होली  में || 

बड़े   मसरूफ़   हैं   शायद  न  वो  इस  बार  आयेंगे |
सतायेगा  हमें  ये  ही  तो  ग़म  इस  बार  होली  में || 

मेरे ख़ालिक़ तू लोगों पर करम इतना किये रखना |
किसी की  आँख हो  पाए  न नम  इस बार होली में ||  

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

चमचें


कम्प्यूटरी डिजाइन मोडल परख नली (टेस्ट ट्यूब )के |
हम  चमचें  ख़ानदानी  इक्कीसवी  सदी  के ||

चमचें  अगर  न  होते  दुन्या  में  आदमी  के |
ये पावँ टिक न पाते कट  जाते  वो  कभी  के ||

परदादा    थे    हमारे    जयचंद   के    पडौसी |
ननसाल  थी   हमारी   पीहर    में  द्रोपदी  के ||

बिन  बात  रोना  धोना पैरों  में गिडगिडाना  |
जिसकी भी हो हुकूमत हम साथ  में उसी के ||

आका कहे जो दिन  है हम  रात क्यों बतायें |
करवा सकें जो चमचें बस में  न है ख़ुदी  के ||

चांदी के चंद सिक्कों में बेच  दें   वतन  को |
मिलते हैं दुश्मनों से जब  हाथ  दोस्ती  के ||

चमचों  से  मात  खाई  हुशियार आदमी ने |
चमचें तो होते ख़ुद के होते न ये किसी  के ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी